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लेखनी कविता - झूला - बालस्वरूप राही

झूला / बालस्वरूप राही

पेंग बढ़ाएँ, झूला झूलें,
आओ आसमान को छू लें।
बड़े-बड़ों से होड लगाएँ,
हम हैं छोटे भूलें।

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1 Comments

Gunjan Kamal

17-Dec-2022 05:02 PM

बहुत ही सुन्दर

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